आज वही वसूली की तारीखि ह। अनधयापकों की मेजों पर रुपयों के ढेर लगे हैं। चारों तरफ खिनाखिन की
आवाजें आ रही हैं। सराफे में भी रुपये की ऐसी झंकार कम सुनाई देती ह। हरेक मास्टर तहसील का चपरासी
बना बैठा हुआ ह। िजस लड़के का नाम पुकारा जाता ह, वह अनधयापक के सामने आता ह, फीस देता ह और
अनपनी जगह पर आ बैठता ह। माचर्य का महीना ह। इसी महीने में अनप्रैल, मई और जून की फीस भी वसूल की जा
रही ह। इम्तहान की फीस भ...
प्रेमचन्द - कर्मभूमि
कर्मभूमि
प्रेमचन्द
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Beschreibung
आज वही वसूली की तारीखि ह। अनधयापकों की मेजों पर रुपयों के ढेर लगे हैं। चारों तरफ खिनाखिन की
आवाजें आ रही हैं। सराफे में भी रुपये की ऐसी झंकार कम सुनाई देती ह। हरेक मास्टर तहसील का चपरासी
बना बैठा हुआ ह। िजस लड़के का नाम पुकारा जाता ह, वह अनधयापक के सामने आता ह, फीस देता ह और
अनपनी जगह पर आ बैठता ह। माचर्य का महीना ह। इसी महीने में अनप्रैल, मई और जून की फीस भी वसूल की जा
रही ह। इम्तहान की फीस भी ली जा रही ह। दसवें दजर्जे में तो एक-एक लड़के को चालीस रुपये देने पड़ रहे हैं।
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